संदेश

मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लव शायरी

चित्र
तेरी जुल्फों की चादर में सांसो की तपन  मैं मर जाऊ ग़र मिल जाये तेरी माहोब्बत का क़फ़न। चाँद से ख़फ़ा चांदनी हो जाये  लौ से ख़फ़ा रोशनी हो जाये  सूरत ही बदल जाये इस महोब्बत की  गर आप से खफा हम हो जाये । ऐ खुदा तेरा ये कैसा इंतकाम हैं बरखा की हर बून्द पर उनका नाम है ग़र तेरे इश्क का नशा ना होता तो हम लापता ना होते तेरे शहर मे जब जब गुजरता हु तेरे शहर से साँसे थम जाती हैं मेरे साथ तेरे शहर की हवाएं भी बेवफ़ाई कर जाती हैं जिस दिन तेरी यादो की रात होगी उस दिन एक नई शुरुआत होगी तू कर ले सितम कितने ही मुझे भुलाने के किसी रोज तो तेरे लबो पे मेरी बात होगी

कलम

चित्र
ना मेरा कोई इतिहास ना मेरी कोई कहानी , मैने ही इतिहास लिखा हैं जानकर हैरानी | चलती हूँ खेत में हल की तरह कागज पर मन मोहक बुवाई मेरी लगती हैं सभी को सुहानी | ना मेरा कोई इतिहास ना मेरी कोई कहानी | मुझसे ही अस्तित्व में है इतिहास कथा कहानी ना झुकी ना रुकी करती थी हर दम मन मानी बेईमानो के हाथ लगी आज सह रही उनकी गुलामी ना मेरा कोई इतिहास ना मेरी कोई कहानी | झूठी वादे सब किये क्या बिजली क्या पानी सत्ता के बासिंदों की नियत ना किसी ने जानी निज स्वार्थ के कारण शोषण हो रहा जनता का बंजर हुई जमीन उपजाऊ नादान हुई किसानी | ना मेरा कोई इतिहास ना  मेरी कोई कहानी| चारों ओर प्रचंड फैली देश में भुखमरी गरीबी बीमारी लड़ने को इन सब से पलायन हो रहा युवा का शहरो में शोर बड़ा गाँव हुए वीरानी | ना मेरा कोई इतिहास ना मेरी कोई कहानी | मैने ही लिखे वेद उपदेश दस्ता -ए -आजादी पाश्चात्य संस्कृति में डूब भारतीय भूल गये हैं खादी | मुझ पर न एकाधिकार किसी का सेठ साहूकार वणिक सिपाही अपनाते हजारो बाजारी पंडित घट पाखंड भया लेखक मेरे पुजारी ना  मेरा कोई इतिहास ना मेरी कोई कहानी |

किसान

चित्र
हल चलाता तेज धुप में मैं माँ का पेट चिरता जाता हूँ खातिर भूख मिटाने को इस दुनिया की , मैं अन्नदाता कहलाता हूँ | विडम्बना बड़ी मेरे सामने देकर निवाला धन कुबेरों को गरीबी नित बुलाता हूँ | अन्नदाता होकर भी अपने परिवार को भूखा सुलता हूँ | ना कोई लोभ दोलत का अपनी गरीबी पर इतराता हु छोड़ निवाला अपना गेरो को खिलाता हु | भूख हरा सके मुझको उसकी इतनी ओकात कहाँ मुरझाया मुखमंडल भी खिलखिला देता हे जहाँ मुझे नही है चाहत की मैं महान बनू दलित हु मैं किसान हु बस चाहत इतनी सी है हर जन्म किसान बनू हर जन्म किसान बनू ||

आओ शहर बनाएँ

चित्र
काट-काट कानन कंकरीट के वन बनाये  आओ शहर बनाएं , सब मिलकर शहर बनाएं । गाँवों  की उड़ती धूल धुंए में बदल जाये  सारे अरमान सारे सपने धुंधले पड़ जाये  वो गाँवों की गालिया कुछ इस कदर भूल जाये   कि उनकी यादे आंखों मैं पानी ले आएं आओ शहर बनाएं , सब मिलकर शहर बनाएं।  खेल-कूद मनोरंजन के साधन, पब-क्लब बार बन जाये       वो रातो में  तारो को गिनना ,दोस्तों के साथ चुपा- चूपि खेलना  सब टी.वी. पर ही हो जाए  आओ शहर बनाएं सब मिलकर शहर बनाएं ।  ना थामे रिश्ते नातो की डोर  अपना  ही एक परिवार बनाएं , ना माँ बाप कुछ कह पाएं , सारे नाते भुलाकर  झूठे नोटों की सान बनाएं  आओ शहर बनाएं सब मिल कर  शहर बनाएं ।  जहां  ना कोई अपना हो ,जहां की भीड़ मैं खुद की पहचान ही खो जाएं  हमदर्दी अपनापन सब भुलाकर हैवानियत का नंगा नाच दिखाएं  देख कर अनदेखा कर दे खुद को इतना अनजान बनाएं   शहर बनाये सब मिलकर शहर बनाएं ।